आजमगढ़ में अखिलेश जीते या निरहुआ, नहीं टूटेगा 30 साल से कायम रिकॉर्ड

आजमगढ़ में अखिलेश जीते या निरहुआ, नहीं टूटेगा 30 साल से कायम रिकॉर्ड



उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ लोकसभा सीट पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बीजेपी से भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ के बीच सीधा मुकाबला है. इस तरह से आजमगढ़ की सियासी लड़ाई दो यादवों के बीच है. ऐसे में अखिलेश जीते या फिर निरहुआ, लेकिन आजमगढ़ का सांसद यादव बिरादरी से होगा. ऐसे में तीन दशक से कायम रिकॉर्ड इस बार भी बरकरार रहेगा.


आजमगढ़ सीट पर यादव और मुस्लिम सबसे प्रभावशाली मतदाता हैं. इसीलिए ज्यादातर इन्हीं दोनों समुदाय से लोग यहां चुने गए हैं. पिछले तीन दशक से इस सीट पर यादव और मुस्लिम का ही कब्जा रहा है. इन दोनों समुदाय के अलावा कोई और नहीं जीत सका है. आखिरी बार 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस से राजपूत समाज के संतोष सिंह जीतने में कामयाब रहे थे.


दिलचस्प बात यह है कि आजमगढ़ ऐसी संसदीय सीट है, जिस पर कोई लहर काम नहीं आई, चाहे 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन की लहर हो या 2014 में मोदी लहर. इन दोनों चुनावों में आजमगढ़ के मतदाताओं ने चौंकाने वाले नतीजे दिए हैं. आजमगढ़ सीट पर अब तक कुल 18 बार चुनाव हुए हैं. इनमें केवल तीन बार ही यादव और मुस्लिम के सिवा किसी दूसरे समाज के नेता ने जीत दर्ज की है.


आजमगढ़ सीट पर पहली बार 1952 में लोकसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस से यहां अलगू शास्त्री चुनाकर संसद पहुंचे थे. इसके बाद बाद 1957 में कालकी कांग्रेस से जीत दर्ज किया. तीसरे लोकसभा चुनाव 1962 में कांग्रेस से राम यादव ने जीत दर्ज की. आजमगढ़ सीट पर पहली बार यादव समुदाय का खाता खुला था. इसके बाद ये सिलसिला शुरू हुआ तो इस पर ब्रेक 1978 में मोहसिना किदवई ने कांग्रेस से उतरकर लगाया. आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव में जनता पार्टी से राम नरेश यादव जीतने में कामयाब रहे थे.


साल 1980 में चुनाव में एक बार फिर आजमगढ़ की सियासत पर यादव समुदाय का दबदबा कायम हुआ और यहां से चंद्रजीत यादव जनता पार्टी से जीतकर सांसद बने. इसके बाद 1984 में संतोष सिंह चुने गए. इसके बाद जितने भी लोकसभा चुनाव हुए हैं, उसमें यादव या फिर मुस्लिम समुदाय से सांसद चुने गए हैं. आजमगढ़ लोकसभा सीट पर साल 1989 से अभी तक यादव और मुस्लिम उम्मीदवार ही आजमगढ़ से जीतकर संसद पहुंचते रहे हैं. 1989 में राम कृष्ण यादव बसपा से यहां जीत का सिलसिला शुरू और 1991 में चंद्रजीत यादव जनता दल से जीते. जबकि यह दौर राम मंदिर आंदोलन का था, इसके बावजूद बीजेपी नहीं जीती.


रमाकांत यादव ने यहां वर्ष 1996 और 1999 में सपा प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की थी. वह वर्ष 2004 में बसपा और 2009 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे. 1998 और 2008 में इस सीट पर हुए उपचुनावों में बसपा के अकबर अहमद डम्पी ने जीत हासिल की थी. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने बीजेपी उम्मीदवार रमाकांत यादव को करीब 63 हजार मतों से हराया था. एक बार फिर यहां की सियासी लड़ाई दो यादवों के बीच है. ऐसे में कोई भी चुने लेकिन पिछले तीन दशक का रिकॉर्ड कायम रहेगा.